बिना बूनियाद से इमारत नहीं बन सकती, बिना बीज के वृक्ष की कल्पना नहीं की जा सकती। यदि आपके अपनी पुरुषार्थ कि इमारत खड़ी करनी है, अपनी सफलता का वृक्षारोपण करना है तो बुनियाद चुननी होगी, बीज दूंडना होगा।

कामयाबी कोई हवाई जुला नहीं है जो बिना किसी आधार से जुल रहा है। ये ट्रांसफर ऑफ एनर्जी है, बिजली का करंट है जिसे किसी ना किसी शोकर्ट की जरूरत पड़ती है। तार हवा में लेहेरानेसे बिजली नहीं आ जाती, वो किसी इलेक्ट्रिक सोर्स से जुड़के जीवित होता है। मै और आप सिर्फ एक तांबे का तार है, वो रद्दी में बिक जाएगा अगर हमने अपना करंट नहीं दूंड लिया।

बाबासाहेब आंबेडकर जी के कुछ विचार है वो मै आगे दे रहा हूं।

1. भविष्य जन्म से नहीं, कर्म से होता है :- गीता में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से केहेते है कि,

चतुर्वर्ण्य मया सृष्टं गुणकर्मविभगाश:।

हे अर्जुन, मेरी ये सृष्टी चार वर्णों में बटी हुई है, और इस बटवाने का आधार है गुण और कर्म। जन्म नहीं।

जन्म से बड़ा छोटा कहना पच्छिम की परम्परा है। पूर्व में नहीं होता। हम तो मानते आए है कि, जात ना पूछो साधु की पूछ लीजिए ज्ञान, मोल करो तलवार का नहीं हो तो भी म्यान।

हमारी श्रद्धा और विनम्रता कि पराकाष्ठा ये है कि, हम सुबह बिस्तर से उठते और धरती पर पैर रखते समय धरती से क्षमा मांगते हैं।

समुद्र वसने देवी पर्वत स्तन मंडले, विष्णू पत्नी नमातुभ्यम पाद स्पर्श क्षमस्वमेव।

हे देवी, तुमने समुद्र रूप के वस्त्र पहनकर , पर्वत तुम्हारा आंचल है, तुम श्री विष्णू की पत्नी हो, तो मै तुम्हे अभिवादन, नमन करते है और हम तुम्हे अपने पैरो से स्पर्श कर रहे है तो हमें क्षमा कर देना देवी।

2. मृत्यु स्विकार है, अपयश नहीं!! :- अंग्रेज़ी में एक कहावत है कि Since is beautiful. अधर्म बड़ा आकर्षक होता है। बड़ी और से अपनी ओर खींचता है। खास करके उसे जो वास्तविक रूप से सक्षम हो और ताकदवान हो। महानता की पहेली शर्थ ये है कि हम अधर्म से बचके चले। अपने कर्तव्य से छल और दूर भागे इससे बड़ा अधर्म क्या हो सकता है?

जो पुत्र मोह में अंधा हो जाता है वो धृतराष्ट बन जाता है और जो अपने यश को अकलंकित रखता है वो श्रीराम कहलाता है।

वाल्मीकि रामायण में स्वयं श्रीराम कहेते है कि , न भितो मरनादस्मि केवलं दूषितम यश:। मुझे मृत्यु का भय नहीं है केवल अपयश का भय है।

3. विद्या से बड़ी कोई शक्ति नहीं। :-

न चोर हार्य न च राज हार्य , न भ्रातृभाज्य न च भारकरी, व्यम कृते वधमी एवं नित्यम, विद्याधनम सर्वधानप्रधानम

विद्या दुनिया का ऐसा धन है, जो चोर चुरा नहीं सकता, राजा छीन नहीं ले सकता, ना भाई बाट सकता है। खर्च करने से और बड़ता है, इसीलिए पूरे संसार में विद्या जैसा अनमोल धन और कोई नहीं है।

येषां न विद्या न तपो न दानं, ज्ञानं न शिलं‌ न गुणों न धर्म: ते मृतूलोके भुविभारभूता मनुष्यारूपेण मृगाश्वरन्ति।।

जिसके पास ना ज्ञान है, ना परिश्रम, ना दान देनेकी ईच्छा, ना ज्ञान का प्रभाव, वो मनुष्य रूप में जन्म लेते हुए भी जानवर जैसे होते है।

पढ़े और पढ़ते रहे, जितना ज्यादा हो सके उतना ज्यादा पढ़े। आप किताबो के साथ समय बिताते है तो आपका समय बदलने में देरी नहीं होगी।

आज इतना ही था । Books are our best friend always!!!

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